Friday, July 31, 2015

Paap- Punya Bank

Friends It is a Bank, where you can submit your good deeds and reasons of happiness spread by you for others.
But at the same time withdraw one Punya from the account & pray to God, so that any one could not play words with him





Har Ghar Mandir Kay Labh

१.     सुविधा –
अ)     यदि आप बुज़ुर्ग हैं या आपको चलने फिरने में दिक्कत है!
आ)   यदि आपके पास से मंदिर दूर है और आने जाने का साधन आसानी से उपलब्ध नहीं!
इ)      यदि मंदिर तक जाने के रास्ता खराब या ट्रैफिक जाम से परेशान कर देने वाला है!
ई)      मौसम परिवर्तन के कारण कभी तेज़ धूप, कभी तेज़ गर्मी, कभी बारिश, कभी आंधी तूफ़ान, कभी कड़ाके की ठण्ड बाधा उत्पन्न करती है!
उ)      विदेशो में रहते हैं और आस पास मंदिर उपलब्ध नहीं!
ऊ)     यदि किसी वजह से घर या दुकान आदि से बहर निकलने में समर्थ नहीं हैं!

हर घर मंदिर के लाभ:- घर बेठे, मोसम की गर्मी या ठण्ड को घर के आराम में भूलकर, आस पास मंदिर ढउन्ढने की परेशानी से दूर, कंही बाहर जाने की ज़रूरत नहीं, ट्रैफिक का शोर-प्रदूषण नहीं. हर घर मंदिर आपके घर, ऑफिस, स्कूल, दुकान या कंही भी आपके कंप्यूटर या मोबाइल पर जब चाहें आपको दर्शन देगा तो जो समय आज तक मंदिर आने जाने में लगता था और उल्टा भगवान् के सामने तो हम सिर्फ हाथ जोड़कर समय की कमी कारण भाग पड़ते थे वो ही समय अब पूरा का पूरा इश्वर को दिल से अपने सामने याद करके वरदान प्राप्त करने में लगा सकते हैं!

२.     समय:-
अगर आप चाहते बहुत हैं पर अपने व्यस्त समय में से मंदिर जाने और ईश्वर के दर्शन का समय नहीं निकाल पाते! यदि थोडा समय होता भी है तो वो मंदिर जाने के लिए पर्याप्त नहीं होता! और या फिर मंदिर दर्शन के लिए अपने व्यस्त कार्यक्रम को तोड़ कर और मेहेत्व्पूर्ण कार्य छोड़कर समय निकालना पड़ता है!

हर घर मंदिर के लाभ:- चाहे समय थोडा हो या ज्यादा, जितनी देर आप अपना समय मंदिर जाने में लगाओगे उतनी देर में यहाँ घर बेठे आरती और चालीसा दोनों पुरे हो चुके होंगे! तो अब समय का कोई बंधन या बाधा हे नहीं!

३.     सीमित समय:-
जब आपके पास समय होता है तो मंदिर बंद हो जाता है और जब मंदिर खुला होता है तो आप व्यस्त होते हैं! या आपके पास लाइनों में लग कर मंदिर खुलने का इंतजार करने का वक्त नहीं होता!

हर घर मंदिर के लाभ:- अब चाहे दोपहर का समय हो या देर रात का, आपका मंदिर बंद नहीं होगा, तो जब चाहें खुद अपने मंदिर को शुरू करें और दर्शन करें, अपनी इच्छा सीधे ईश्वर को बताएं और फल पायें!

४.     भीडभाड:-
अ) आप अधिकतर लोगो की तरह भीड़ भाड़ से डरते हैं और दर्शनों के लिए घंटो लाइनों में लगना आपको पसंद नहीं!
आ) या आपको एलर्जी इत्यादि की समस्या है और स्वास्थ्य आपको भीड़ में जाने की इजाज़त नहीं देता!

हर घर मंदिर के लाभ:- अब न लाइनों में खड़ा होना न भीड़ में जाने की ज़रूरत, गीता में भी ईश्वर ने कहा है के जो 
एक मुझको दिल से भजता है में उसके प्रेम में बंध कर उसके पास पहुँच जाता हूँ! तो लीजिये आ गया मंदिर खुद चलके आपके घर, हर घर मंदिर के साथ! या यूँ कहें के इस समस्याओं भरे युग में आपके दर्शनों की प्यास बुझाने और आपको वरदानो से भरने के लिए इश्वर का नया अवतार है हर घर मंदिर!

५.     प्रभु से मिलन का अनुभव:-
यदि आस पास के लोगो के कारण आपको प्रभु दर्शन और प्रभु मिलन के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता और आप दिल से ईश्वर से जुड़कर उसे एकांत में अपने दिल की बात नहीं कह पाते!

हर घर मंदिर के लाभ:- यहाँ आप घर की शांति में ईश्वर से जितनी चाहे उतनी बात कर सकते हो क्योंकि आस पास कोई अनचाहा व्यक्ति नहीं होगा तो ध्यान भी उच्च कोटि का होगा! फिर भी यदि एकाग्रचित्ता नहीं बनती और ध्यान नहीं लगता तो व्हट्स एप्प टू गॉड आप्शन से अपनी बात ईश्वर तक पहुँचाने के लिए हमें पत्र रूप में भेज सकते हैं!

६.     मन की शांति:-
यदि लोगो के बीच या लाउड स्पीकरों के कारण आपको मन की शांति नहीं मिलती और आप आस पास के वातावरण के कारण ध्यान मग्न नहीं हो पाते!

हर घर मंदिर के लाभ:- यहाँ स्क्रीन पर मंदिर आते ही कान में लगी तार का संगीत इतना मधुर होता है की बाहर की कोई आवाज़ चाह कर भी आपके और ईश्वर के बीच नहीं आ पाओगी!

७.     वातावरण:-
यदि आप अज्ञानियों द्वारा फेलाए गाये कूड़े या शोर आदि के कारण आस पास के वातावरण में खुद को असेहेज पाते हैं!

हर घर मंदिर के लाभ:- अपने घर जेसी दुनिया भर में कोई दूसरी जगह नहीं और अब यहाँ आप अपने हे घर में बेठे बेठे ईश्वर से ध्यान लगा सकते हैं! और उसकी शक्तियों की ख़ुशी महसूस कर सकते हैं! तो अब आपका ध्यान और ख़ुशी आस पास घूम रहे व्यक्तियों की मोहताज नहीं!

८.     आपकी इच्छा सर्वोपरि होने की सम्भावना न होना:-
आप उस एक परम पिता परमात्मा के विभिन्न रूपों में से किसी एक रूप को अपना आराध्य बना चुके हैं और जब मंदिर पहुंचे तो उस रूप के अतिरिक्त किसी और रूप की आरती या भजन को अपनी इच्छा अनुसार नहीं लगवा सकते क्योंकि मंदिर सभी की आस्था को ध्यान में रखते हुए चल सकते हैं और मात्र किसी व्यक्ति विशेष की नहीं! आप अपनी कुंडली या मान्यताओं की मांग के अनुसार किसी विशेष रूप की पूजा की मांग नहीं कर सकते!

हर घर मंदिर के लाभ:- जो व्यक्ति अपनी इच्छा से जीने के शौक़ीन हैं वह दुसरो के अनुसार इंतजार नहीं करते, एसे में अपनी मर्ज़ी से भजन इत्यादि लगाकर आप अपनी ख़ुशी अनुसार भजन इत्यादि का लुत्फ़ उठा सकते हो! आपकी कुंडली के अनुसार जिस देव रूप के पास जाना आपके लिए अनुचित है, अतेह वहां आप सीधे बाकि ग्रहों का भजन करके अपने भाग्य को और अधिक बलवान बना सकते हैं!

९.     पाखंडियों से बचना:-
कई पाखंडी ईश्वर के सच्चे साधको और ज्ञानी महाज्ञानी पंडितों की कमाई नाम, शोहरत और ज्ञान का नाजायज लाभ उठाते हैं और भोले भाले लोगो को नुक्सान पहुंचाते हैं जिससे जीवन समर्पित करने वाले पंडितो का भी नाम खराब होता है!

हर घर मंदिर के लाभ:- हर घर मंदिर की सभी सामान्य सुविधाएँ निशुल्क हैं एसे में किसी पाखंडी के जाल में फसने की कोई सम्भावना ही नहीं होती!

१०.    नयी जगह पर मंदिर ढूँढने की समस्या:-
यदि आप किसी नयी जगह पर व्यवसाये, नौकरी या घूमने के कारण पहुंचे हो पर आस पास मंदिर ढूँढने में असमर्थ हो पर अपना ईश्वर को याद करने का रोजाना का नियम तोडना नहीं चाहते!

हर घर मंदिर के लाभ:- अब आपको कंही बहार जाने पर मंदिर ढूँढने की ज़रूरत नहीं बस अपना फोन निकालो और कंप्यूटर इत्यादि द्वारा खड़े हो जाओ ईश्वर के सामने!

११.    दान दक्षिणा के लिए असमर्थता के कारण हिचक:-
यदि आपमें अन्य दानी व्यक्तियों, जो मंदिर की सेवा में बड चदकर भाग लेते हैं की तुलना में दान दक्षिणा की इच्छा या सामर्थ्य न होने के कारण मंदिर जाने की कोई हिचक हो!

हर घर मंदिर के लाभ:- यहाँ कोई सामने होगा ही नहीं बस होगा तो ईश्वर, तो न कोई हिचक और न दिक्कत!

१२.    सूचना का आभाव:-
कभी कभी मंदिर में कोई मूर्ति लगी हो चाहे ईश्वर के किसी रूप की चाहे वह संसथान स्थापित करने वाले किसी व्यक्ति की, और आप उसके बारे में न जानते हों तो भी सबको उनके आगे हाथ जोड़ता देख कभी श्रद्धा, कभी डर तो कभी भीड़-चाल में आप भी पूजा करने लग जाते हैं और उस मूर्ति या उसकी पूजा का मेहेत्व समझे बिना कार्य करते रहते हैं! जो उचित नहीं है!

हर घर मंदिर के लाभ:- यहाँ आपको हर देव के बारें में विस्तार से जानने का मोका मिलेगा और उनके अनुसार अपने कर्म बदलने और सही समय पर सही पूजा करने से कर्मो के फलो की प्राप्ति का स्तर बहुत बढ़ जाता है!

१३.    विचारो का आदान-प्रदान:-
मंदिर में पहले के समय की भांति ज्ञान चर्चाओं का समय के कारण कुछ आभाव सा हो गया है! सत्संग होते हैं पर अधिकतर सिर्फ सुविचार सामने से मिलते हैं उन पर दोनों तरफ से चर्चा नहीं होती जिस कारण कई प्रश्न साधको के मन में रह जाते हैं और शांत नहीं हो पाते!

हर घर मंदिर के लाभ:- मुख्य समस्याओं को ध्यान रखा गया हैं! और मुख्य गुरुओं की भी कमेन्ट्री लाइव जोड़ी की गयी है इसे देखिये और और अपना जीवन सुधारिए!

१४.    ज्ञान किरणों से आसान योग और ध्यान:-
मंदिर का हमेशा एक विशेष महत्त्व यह रहता है की कई लोग एक साथ वहां होकर पूजा पाठ करते हैं तो ज्ञान योग से वह औरा मूर्तियों या चित्रों में आता है हो मूर्तियों या धातुओं से आगे बढाकर ईश्वरिये शक्ति प्रदान करता है!

हर घर मंदिर के लाभ:- एक मंदिर में जो भी लोग आते हैं उनकी संख्या निश्चित है, पर तथास्तु ज्योतिशालय में पूरी दुनिया से लोग आते हैं और चित्रों का ओरा इतना मज़बूत हो गया है की दिल में इच्छा सोचने से पहले पूरी हो जाये!
                          

                                                       तथास्तु ज्योतिशाल्या एवं वास्तु केंद्र 

Monday, July 27, 2015

Kavach Gyan



दुर्गा कवच

 श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।

पठित्वा पाठयित्वा च नरो मुच्येत संकटात् ॥ १॥

 अज्ञात्वा कवचं देवि दुर्गामंत्रं च यो जपेत् ।

स नाप्नोति फलं तस्य परं च नरकं व्रजेत् ॥ २॥

 उमादेवी शिरः पातु ललाटे शूलधारिणी ।

चक्षुषी खेचरी पातु कर्णौ चत्वरवासिनी ॥ ३॥

 सुगंधा नासिके पातु वदनं सर्वधारिणी ।

जिह्वां च चंडिकादेवी ग्रीवां सौभद्रिका तथा ॥ ४॥

 अशोकवासिनी चेतो द्वौ बाहू वज्रधारिणी ।

हृदयं ललितादेवी उदरं सिंहवाहिनी ॥ ५॥

 कटिं भगवती देवी द्वावूरू विंध्यवासिनी ।

महाबला च जंघे द्वे पादौ भूतलवासिनी ॥ ६॥

 एवं स्थितासि देवि त्वं त्रैलोक्ये रक्षणात्मिका ।

रक्ष मां सर्वगात्रेषु दुर्गे देवि नमोस्तुते ॥ ७॥

 ॥ इति दुर्गाकवचं संपूर्णम् ॥



सूर्य कवच

II अथश्रीसूर्यकवचस्तोत्रम् II

श्री गणेशाय नमः I

याज्ञवल्क्य उवाच I

श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् I

शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम् II १ II

दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम् I

ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत् II २ II

शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेSमितद्दुतिः I

नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः II ३ II

घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः I

जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः II ४ II

स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः I

पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः II ५ II

सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके I

दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः II ६ II

सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योSधीते स्वस्थ मानसः I

स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति II ७ II

II इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं संपूर्णं II



राहू कवच

II राहुकवचम् II
अथ राहुकवचम्
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः I
अनुष्टुप छन्दः I रां बीजं I नमः शक्तिः I
स्वाहा कीलकम् I राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् II
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् II १ II
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः I
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् II २ II
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम I
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः II ३ II
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ I
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः II ४ II
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः I
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा II ५ II
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः I
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: II ६ II
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो I
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् I
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् II ७ II
II इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं II

केतु कवच

II केतुकवचम् II
अथ केतुकवचम्
अस्य श्रीकेतुकवचस्तोत्रमंत्रस्य त्र्यंबक ऋषिः I
अनुष्टप् छन्दः I केतुर्देवता I कं बीजं I नमः शक्तिः I
केतुरिति कीलकम् I केतुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
केतु करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम् I
प्रणमामि सदा केतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् II १ II
चित्रवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसमद्युतिः I
पातु नेत्रे पिंगलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः II २ II
घ्राणं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः I
पातु कंठं च मे केतुः स्कंधौ पातु ग्रहाधिपः II ३ II
हस्तौ पातु श्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः I
सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः II ४ II
ऊरुं पातु महाशीर्षो जानुनी मेSतिकोपनः I
पातु पादौ च मे क्रूरः सर्वाङ्गं नरपिंगलः II ५ II
य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम् I
सर्वशत्रुविनाशं च धारणाद्विजयि भवेत् II ६ II
II इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे केतुकवचं संपूर्णं II

हनुमान कवच

श्री गणेशाय नम: |
ओम अस्य श्रीपंचमुख हनुम्त्कवचमंत्रस्य ब्रह्मा रूषि:|

गायत्री छंद्: |
पंचमुख विराट हनुमान देवता| र्‍हीं बीजम्|
श्रीं शक्ति:| क्रौ कीलकम्| क्रूं कवचम्|
क्रै अस्त्राय फ़ट्| इति दिग्बंध्:|
श्री गरूड उवाच्||
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि|

श्रुणु सर्वांगसुंदर| यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत्: प्रियम्||१||

पंचकक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम्| बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिध्दिदम्||२||

पूर्वतु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्| दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटीकुटिलेक्षणम्||३||

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्| अत्युग्रतेजोवपुष्पंभीषणम भयनाशनम्||४||

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्| सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्||५||

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दिप्तं नभोपमम्| पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्| ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्| येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यमं महासुरम्||७||

जघानशरणं तस्यात्सर्वशत्रुहरं परम्| ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्||८||

खड्गं त्रिशुलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम्| मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुं||९||

भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रा दशभिर्मुनिपुंगवम्| एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्||१०||

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरण्भुषितम्| दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानु लेपनम सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम्||११||

पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशांकशिखरं कपिराजवर्यम्| पीताम्बरादिमुकुटै रूप शोभितांगं पिंगाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि||१२||

मर्कतेशं महोत्राहं सर्वशत्रुहरं परम्| शत्रुं संहर मां रक्ष श्री मन्नपदमुध्दर||१३||

ओम हरिमर्कट मर्केत मंत्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले| यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुंच्यति मुंच्यति वामलता||१४||

ओम हरिमर्कटाय स्वाहा ओम नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाया|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरूडाननाय सकलविषहराय स्वाहा|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा|

||ओम श्रीपंचमुखहनुमंताय आंजनेयाय नमो नम: ||



श्री नारायण कवच

अथ श्रीनारायणकवच

 ॥राजोवाच॥
यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम्॥१॥

भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्।
यथास्स्ततायिनः शत्रून् येन गुप्तोस्जयन्मृधे॥२॥

॥श्रीशुक उवाच॥
वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेंद्रायानुपृच्छते।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु॥३॥

विश्वरूप उवाचधौतांघ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः।
कृतस्वांगकरन्यासो मंत्राभ्यां वाग्यतः शुचिः॥४॥

नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि॥५॥

मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत्।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा॥६॥

करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया।
प्रणवादियकारंतमंगुल्यंगुष्ठपर्वसु॥७॥

न्यसेद् हृदय ओंकारं विकारमनु मूर्धनि।
षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत्॥८॥

वेकारं नेत्रयोर्युंज्यान्नकारं सर्वसंधिषु।
मकारमस्त्रमुद्दिश्य मंत्रमूर्तिर्भवेद् बुधः॥९॥

सविसर्गं फडंतं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत्।
ॐ विष्णवे नम इति ॥१०॥

आत्मानं परमं ध्यायेद ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मंत्रमुदाहरेत ॥११॥

ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्तांघ्रिपद्मः पतगेंद्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोस्ष्टगुणोस्ष्टबाहुः ॥१२॥

जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोस्व्यात् त्रिविक्रमः खे‌உवतु विश्वरूपः ॥१३॥

दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहो‌உसुरयुथपारिः।
विमुंचतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ॥१४॥

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामो‌உद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोस्व्याद् भरताग्रजोस्स्मान् ॥१५॥

मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबंधात् ॥१६॥

सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनांतरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ॥१७॥

धन्वंतरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वंद्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनांताद् बलो गणात् क्रोधवशादहींद्रः ॥१८॥

द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखंडगणात् प्रमादात्।
कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः ॥१९॥

मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविंद आसंगवमात्तवेणुः।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यंदिने विष्णुररींद्रपाणिः ॥२०॥

देवोस्पराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोस्वतु पद्मनाभः ॥२१॥

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशो‌உसिधरो जनार्दनः।
दामोदरो‌உव्यादनुसंध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥२२॥

चक्रं युगांतानलतिग्मनेमि भ्रमत् समंताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दंदग्धि दंदग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ॥२३॥

गदे‌உशनिस्पर्शनविस्फुलिंगे निष्पिंढि निष्पिंढ्यजितप्रियासि।
कूष्मांडवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ॥२४॥

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेंद्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनो‌உरेर्हृदयानि कंपयन् ॥२५॥

त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिंधि छिंधि।
चर्मञ्छतचंद्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥२६॥

यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्यों‌உहोभ्य एव वा ॥२७॥

सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयांतु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः ॥२८॥

गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छंदोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥२९॥

सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिंद्रियमनः प्राणान् पांतु पार्षदभूषणाः ॥३०॥

यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यांतु नाशमुपाद्रवाः ॥३१॥

यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुद्धलिंगाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ॥३२॥

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ॥३३

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समंतादंतर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयंल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥३४॥

मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारयणात्मकम्।
विजेष्यस्यंजसा येन दंशितो‌உसुरयूथपान् ॥३५॥

एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा।
पदा वा संस्पृशेत् सद्यः साध्वसात् स विमुच्यते ॥३६॥

न कुतश्चित भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत्।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ॥३७॥

इमां विद्यां पुरा कश्चित् कौशिको धारयन् द्विजः।
योगधारणया स्वांगं जहौ स मरूधन्वनि ॥३८॥

तस्योपरि विमानेन गंधर्वपतिरेकदा।
ययौ चित्ररथः स्त्रीर्भिवृतो यत्र द्विजक्षयः ॥३९॥

गगनान्न्यपतत् सद्यः सविमानो ह्यवाक् शिराः।
स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ॥४०॥

॥श्रीशुक उवाच॥
य इदं शृणुयात् काले यो धारयति चादृतः।
तं नमस्यंति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात् ॥४१॥

एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः।
त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्य‌உमृधेसुरान् ॥४२॥

॥इति श्रीनारायणकवचं संपूर्णम्॥



शनि कवच

II शनि कवचं II 

अथ श्री शनिकवचम् 

 अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II

अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II

शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II

निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् II

चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः II १ II

 ब्रह्मोवाच II 

 श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् I

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् II २ II

 कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् I

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् II ३ II

 ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः I

नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः II ४ II

 नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा I

स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः II ५ II

 स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः I

वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा II ६ II

 नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा I

ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा II ७ II

 पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः I

अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः II ८ II

 इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः I

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः II ९ II

 व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा I

कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः II १० II

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे I

कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् II ११ II

 इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा I

द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा I

जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः II १२ II


  II इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म–नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं II